आज
तो
चाहे
कोई
विक्टोरिया
छाप
काजल
लगाये
या
साध्वी
ऋतंभरा
छाप
अंजन
लेकिन
असली
गाय
के
घी
का
सुरमा
तो
नूर
मियां
ही
बनाते
थे
कम
से
कम
मेरी
दादी
का
तो
यही
मानना
था
नूर
मियां
जब
भी
आते
मेरी
दादी
सुरमा
जरूर
खरीदती
एक
सींक
सुरमा
आँखों
मे
डालो
आँखें
बादल
की
तरह
भर्रा
जाएँ
गंगा
जमुना
कि
तरह
लहरा
जाएँ
सागर
हो
जाएँ
बुढिया
कि
आँखें
जिनमे
कि
हम
बच्चे
झांके
तो
पूरा
का
पूरा
दिखें
बड़ी
दुआएं
देती
थी
मेरी
दादी
नूर
मियां
को
और
उनके
सुरमे
को
कहती
थी
कि
नूर
मियां
के
सुरमे
कि
बदौलत
ही
तो
बुढौती
में
बितौनी
बनी
घूम
रही
हूँ
सुई
मे
डोरा
दाल
लेती
हूँ
और
मेरा
जी
कहे
कि
कहूँ
कि
ओ
री
बुढिया
तू
तो
है
सुकन्या
और
तेरा
नूर
मियां
है
च्यवन
ऋषि
नूर
मियां
का
सुरमा
तेरी
आँखों
का
च्यवनप्राश
है
तेरी
आँखें
, आँखें
नहीं
दीदा
हैं
नूर
मियां
का
सुरमा
सिन्नी
है
मलीदा
है
और
वही
नूर
मियां
पाकिस्तान
चले
गए
क्यूं
चले
गए
पाकिस्तान
नूर
मियां
कहते
हैं
कि
नूर
मियां
का
कोई
था
नहीं
तब
, तब
क्या
हम
कोई
नहीं
होते
थे
नूर
मियां
के ?
नूर
मियां
क्यूं
चले
गए पाकिस्तान ?
बिना
हमको
बताये
बिना
हमारी
दादी
को
बताये
नूर
मियां
क्यूं
चले
गए पाकिस्तान?
अब
न
वो
आँखें
रहीं
और
न
वो
सुरमे
मेरी
दादी
जिस
घाट
से
आयी
थी
उसी
घाट
गई
नदी
पार
से
ब्याह
कर
आई
थी
मेरी
दादी
और
नदी
पार
ही
चली
गई
जब
मैं
उनकी
राखी
को
नदी
में
फेंक
रहा
था
तो
लगा
कि
ये
नदी,
नदी
नहीं
मेरी
दादी
कि
आँखें
हैं
और
ये
राखी,
राखी
नहीं
नूर
मियां
का
सुरमा
है
जो
मेरी
दादी
कि
आँखों
मे
पड़
रहा
है
इस
तरह
मैंने
अंतिम
बार
अपनी
दादी
की
आँखों
में
नूर
मियां
का
सुरमा
लगाया.
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